सागर का महत्व

महासागरों ने मनुष्यों के जीवन एवं इतिहास को सदैव ही प्रभावित किया है। अनादिकाल से ही मानव महासागरों का कई तरीकों से इस्तेमाल करता आया है। हमारे पौराणिक शास्त्रों के अनुसार देवताओं और राक्षसों ने समुद्र मंथन किया तथा अमरत्व प्राप्त करने वाला अमृत पान किया। आज भी हम महासागरों से अनेक खनिज, भोजन एवं ऊर्जा संसाधन प्राप्त कर रहे हैं। पृथ्वी का लगभग 3610 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र सागर है जिसकी औसत गहराई लगभग 3,730 मीटर, एवं कुल आयतन लगभग 1,34,70,000 लाख घन किलोमीटर है। अपनी विशालता और आवश्यक संसाधनों का विशाल भंडार होने के साथ-साथ, महासागर वायुमंडल एवं विश्व की जलवायु को भी नियंत्रित करते हैं। महासागर अनेक संसाधनों जैसे खनिज (धातुओं, तेल, प्राकृतिक गैस, रसायनों आदि), भोजन (मछली, झींगुर, लाब्स्टर आदि) तथा ऊर्जा (तंरग, जलधाराएँ, ज्वार भाटा इत्यादि) के विशाल भंडार हैं। इनके अतिरिक्त, महासागर मौसम एवं जलवायु को नियंत्रित करते हैं तथा इस प्रकार से पर्यावरण को भी एक हद तक प्रभावित करते हैं। यहाँ तक की हमारे द्वारा ली जाने वाली साँस की गुणवत्ता भी काफी हद तक महासागरों व वायुमंडल की पारस्परिक क्रियाओं पर निर्भर करती है। महासागरों में कई प्रकार के खनिज, ऊर्जा व खाद्य संसाधन विद्यमान हैं। ये पृथ्वी पर खनिज, तेल और गैस के विशालतम भंडार हैं। महासागरीय तलछट तेल एवं प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार हैं। जब मृत जीवाणुओं के कार्बनिक पदार्थ समुद्र-तल पर मिट्टी के नीचे दब जाते हैं तो तेल व प्राकृतिक गैस का निर्माण होता है। सागर-तल पर फास्फोराइट भंडार भी हैं जिनका निर्माण फास्फोरस के अकार्बनिक अवक्षेपण होने अथवा उनके प्रतिस्थापित होने के कारण होता है। मानव द्वारा प्रयोग मे लाया जाने वाला नमक का अधिकांश भाग समुद्री जल से प्राप्त होता है। वस्तुत: महासागर बड़े तटीय समुदायों के प्रमुख भोजन का प्राथमिक स्त्रोत है। हमारे ग्रह के प्राणि तथा वनस्पति प्रजातियों में से लगभग 30 प्रतिशत प्रजातियाँ समुद्र में रहती हैं। ऐसी धारणा है कि जीवन की उत्पति समुद्र में ही हुई है। समुद्री जीवों से निकाले गये कुछ यौगिक विषाणुनाशक, ट्यूमररोधी व रोगाणुनाशी पाए गए हैं तथा उनका विकास औषधियों के रुप में किया जा सकता है। वर्तमान में ऊर्जा की भारी कमी को देखते हुए वैकल्पिक गैर-परंपरागत ऊर्जा संसाधनों का विकास आवश्यक है। महासागरों से ऊर्जा उत्पादन के लिए अनेक प्रकार के परिवेश उपलब्ध होते हैं जो पुर्ननवीकरणीय एवं प्रदूषण रहित हैं। समुद्र-तल के ठंडे एवं सतह के गर्म पानी का प्रयोग कर ऊर्जा का उत्पादन करना सम्भव है।